Tuesday 21 August 2018

कोई भी भूखा न सोये के उद्देश्य के साथ अनाज बैंक की मुहिम

उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र अनेकानेक प्राकृतिक संपदाओं से संपन्न होने के बाद भी भोजन, पानी की समस्या से परेशान बना रहता है. हालत इस तरह की हो चुकी है कि ग्रामीण अंचलों के बहुतायत गाँवों से युवाओं को पलायन करके शहरी क्षेत्रों की तरफ जाना पड़ रहा है. बारिश की स्थिति विगत कई वर्षों से ऐसी है जिससे सूखे के हालात उत्पन्न होते रहे हैं. खेत के खेत सूखे की चपेट में आ रहे हैं. फसलें खड़े-खड़े बारिश के इंतजार में सूखने लगती हैं. खाद्यान्न की जबरदस्त कमी के चलते बुन्देलखण्ड क्षेत्र के अनेक गाँवों में भुखमरी जैसे हालात पैदा होने लगते हैं. विगत वर्ष कुछ गाँवों से भूख से मौत की खबरें आने के बाद प्रशासनिक लीपापोती शुरू कर दी गई थी. स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फसलों के अभाव में जानवरों के लिए चारे की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है. इसके चलते यहाँ के निवासी अपने पालतू जानवरों को खुला छोड़ देते हैं. जिसके चलते अन्ना समस्या भी बुन्देलखण्ड में विकराल रूप धारण करने लगी है. भूख की स्थिति के कारण ही अनेकानेक अपराधों को प्रश्रय मिलता है. कोई भी व्यक्ति किसी भी स्थिति में बना रह सकता है मगर अपनी भूख के चलते, अपने परिजनों की भूख के चलते, अपने बच्चों की भूख के चलते वह किसी भी तरह के अपराध को करने को प्रवृत्त हो जाता है. भूख ही मनुष्य को अपराध की तरफ ले जाती है, भूख ही उसे मौत की तरफ ले जाती है, भूख ही व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने लगती है.


अभी हाल में दिल्ली में भूख से तीन बच्चियों की मृत्यु के मामले ने सबको झकझोर कर रख दिया. इस एक घटना से ऐसा लगा जैसे समाज से संवेदना एकदम समाप्त हो चुकी है. दिल्ली जैसी जगह में भूख से तीन-तीन बच्चियों की मृत्यु का होना अपने आपमें शर्मनाक स्थिति है. आखिर समाज को क्या होता जा रहा है? सरकारी कदमों, योजनाओं की खिल्ली हम समाज के लोग आये दिन उड़ाते रहते हैं. इसके उलटे कभी एक कदम बढ़कर हम ही आगे क्यों नहीं आते हैं? यह एक ऐसा सवाल है जो उन तमाम लोगों के मुँह बंद करता है जो सिर्फ और सिर्फ तमाशबीन बने समाज को देखते रहते हैं. समाज के अनेकानेक असंवेदित लोगों के मध्य कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भूख के खिलाफ पूरी ईमानदारी से लड़ाई लड़ने में लगे हैं. ऐसे ही लोगों में काशी के डॉ० राजीव श्रीवास्तव हैं जो अनाज बैंक के माध्यम से भूख के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं. उनके अनाज बैंक से प्रेरित होकर बुन्देलखण्ड में भी पहला अनाज बैंक उरई शहर में स्थापित किया गया. इसके द्वारा प्रतिमाह दो बार गरीब, असहाय महिलाओं को अनाज की व्यवस्था की जाती है. अनाज बैंक का उद्देश्य है कि कोई भी भूखा न सोने पाए. इसके लिए सामाजिक स्तर से प्राप्त होने वाली मदद के द्वारा गरीब महिलाओं की मदद की जाती है.


अनाज बैंक के द्वारा सिर्फ गरीब महिलाओं की ही नहीं वरन उनकी भी मदद की जाती है जो परिस्थिजन्य भूख से भी पीड़ित हैं. प्राकृतिक आपदाओं के चलते अपने घरों से विस्थापित लोगों को भोजन की व्यवस्था अनाज बैंक द्वारा की जाती है. अभी हाल ही में उरई के कुछ क्षेत्रों में बारिश का पानी भर जाने के कारण बेघर हुए लगभग तीन सौ लोगों को अनाज बैंक, उरई द्वारा दोनों समय भोजन की व्यवस्था की गई. ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे भूख से लोगों की मौत हो जाती है? क्या आज भी समाज किसी संस्था, किसी एक व्यक्ति के भरोसे ही बैठा है? क्या एक-एक परिवार इतना भी सक्षम नहीं कि वह अपने बगल के गरीब, मजबूर परिवार को एक समय का भोजन करवा सके? क्या किसी मोहल्ले में इतनी भी संवेदना शेष नहीं कि वह अपने बीच के एक परिवार को सप्ताह में दो-चार दिन भोजन उपलब्ध करवा सके? काशी से विश्व के पहले अनाज बैंक के रूप में शुरू हुआ अभियान अब बुन्देलखण्ड में भी सफलतापूर्वक संचालित है. अनाज बैंक का उद्देश्य यही है कि समाज में कोई भी भूखा न रहे. समाज के लोगों को, समाज के लोगों द्वारा ही जगाने का, भूख से बचाने का काम अनाज बैंक के द्वारा किया जा रहा है. अपेक्षा यही की जा सकती है कि आने वाले दिनों में कोई मृत्यु भूख के कारण न होने पाए.  

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